मैं शिक्षक हूँ, मैं सीखकर सिखाता हूँ।
एक बेहतर दुनिया का सपना, हर रोज़ बुनता जाता हूँ।।
मैं कुम्हार हूँ, कच्ची माटी को गढ़ता हूॅं।
सपनों को आकार देकर, भविष्य को रचता हूॅं।।
भोली-भाली आँख में, जिज्ञासाओं को पढ़ता हूँ।
उनके नन्हें कदमों संग, मीलों तक चलता हूँ।।
कभी दोस्त बन, उनके राज़ सुनता हूँ।
कभी माँ बनकर, आँचल में भरता हूँ।।
मेरी कक्षा की दीवारों में, कल का भारत पलता है।
हँसते-खिलखिलाते चेहरों में, मेरा ही स्नेह झलकता है।।
जब कोई शिष्य मेरा, ऊँची उड़ान भरता है।
गर्व से कद मेरा भी, आसमान तक बढ़ता है।।
स्याही और चॉक से, मेरा रिश्ता बहुत पुराना है।
हर शब्द से उनके जीवन में, उजाला भर जाना है।।
मैं वो माली हूँ जो सींचता है, ज्ञान की फुलवारी को।
महका देता हूँ अपनी मेहनत से, हर एक क्यारी को।।
थकता हूँ कभी, पर रुकना नहीं सीखा।
निराशा के अँधेरों में, झुकना नहीं सीखा।।
बस एक ही लगन, एक ही अभिलाषा है।
हर बच्चे के मन में, जगानी ज्ञान की आशा है।।
हाँ, मैं शिक्षक हूँ, मैं सीखकर सिखाता हूँ।
एक बेहतर दुनिया का सपना, हर रोज़ बुनता जाता हूँ।।
लेखन: सचिन ओझा
प्राध्यापक,
माध्यमिक शिक्षा विभाग राजस्थान
सचिन ओझा राजस्थान राज्य के बीकानेर जिले के निवासी हैं। जोधपुर संभाग का नवीन ज़िला फलोदी इनकी कर्मभूमि रही हैं। शिक्षा के प्रति गहरी रुचि और समर्पण के साथ इन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की तथा वर्ष 2013 में वरिष्ठ अध्यापक पद पर सेवाएँ प्रारंभ की और वर्तमान में व्याख्याता के पद पर कार्यरत हैं। शिक्षण के साथ-साथ विषयगत नवाचार और अनुसंधान के द्वारा विद्यार्थियों को सरल, रोचक और व्यावहारिक पद्धति से ज्ञान प्रदान करना और जीवन मूल्यों से विद्यार्थियों के जीवन को उद्देश्यपरक बनाना, शिक्षा के क्षेत्र में इनका योगदान रहा है।
इनके लेखन कार्यों, शैक्षिक नवाचारों, उपचारात्मक शिक्षण, क्रियात्मक एवं सर्वेक्षण शोध कार्यों, जीवन मूल्य एवं शांति शिक्षा और सामाजिक उत्तरदायित्वों में सक्रिय भागीदारी के परिणामस्वरूप इनकी राज्य एवं जिला स्तर पर अनेक बार सराहना की गई है। इसके अतिरिक्त, चुनावी कार्यों एवं मतदाता जागरूकता अभियानों में भी इन्होंने उल्लेखनीय भूमिका निभाई है।
वर्तमान में सचिन ओझा विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास, शिक्षण के नवीन तरीकों, विभागीय अनुसंधानों और समाज में शिक्षा के माध्यम से सकारात्मक वातावरण बनाने के लिए कार्यरत हैं। इनका लक्ष्य है कि आने वाली पीढ़ियाँ ज्ञान के साथ-साथ संस्कारों से भी समृद्ध हों और राष्ट्र निर्माण में योगदान दे सकें।